मेरी अंतिम यात्रा कैसी हो?
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Company Secretary by profession, Acupressure therapist by hobby, Human by
nature, trying to alleviate the pains of suffering humanity.
President
Pain Relief Foundation
#205, Himalaya Enclave, 1, Shivajinagar,
Gandhinagar (LAD College) Square
NAGPUR 440010
cell 094228-03662
Visit for pain relief/ training with prior Appointment
Mon - Fri 8 am to 9.30 am
email:asawaramanuj@gmail.com
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हमारा देश त्योहारों और रीति रिवाजों का देश है। रीति रिवाजों में देश काल के हिसाब से बदलाव आना आवश्यक होता है। यह बदलाव रीति रिवाजों को प्रासंगिक और उपयोगी रखने के लिए आवश्यक होते हैं। जब यह देश काल के हिसाब से बदलते नहीं है तो यही रीति रिवाज कुरीतियों का रूप धारण कर लेते हैं और इनकी उपयोगिता और प्रासंगिकता नष्ट हो जाती है और ये सिर्फ ढकोसला बनकर रह जाते है।
मृत्यु पर शव यात्रा में जाना एक आवश्यक कार्य था। आज भी माना जाता है कि आप चाहे किसी परिवार में विवाह में मत जाओ लेकिन मृत्यु पर जरूर जाना चाहिए। दुख: में शामिल होना अच्छी बात मानी जाती है। पहले के जमाने में अर्थी को कंधा देना एक पुण्य कार्य माना जाता था। हर किसी को अर्थी बांधना भी नहीं आता है। कुछ ही लोग इस कार्य में अनुभवी और निपुण होते हैं और वह मृत्यु की खबर मिलते ही पहुँच जाते हैं और अपना काम पूरे मनोयोग से करते हैं।
बदले परिवेश में गाड़ी से शवयात्रा निकलती है और आए हुये लोग भी अपने अपने वाहनों में पहले घर तक और फिर श्मशान में पहुँचते हैं। कई बार तो यह एक बड़े काफिले का रूप धारण कर लेता है। कभी ट्रेफिक जाम का भी कारण बन जाता है। लोग अपने वाहन जहां तहां खड़े कर देते हैं और परिवहन में लोगों को परेशानी होती है। कई लोग तो सीधे श्मशान ही पहुँचते हैं। कम से कम तीन चार घंटे आने और जाने में लग जाते हैं। इन सब चीजों की कोई उपयोगिता नहीं है। कोई दुखी परिवार से सांत्वना की बात नहीं करता है। सब लोग आपस में बातें करते देखे जा सकते हैं। कई लोग अपने मोबाइल फोन पर बातें करते देखे जा सकते हैं।
मैं अपनी शव यात्रा कैसी चाहता हूँ इस पर मेरे कुछ विचार यहाँ पर लिख रहा हूँ:
मैंने अपने नेत्रदान का संकल्प किया हुआ है। मैं चाहता हूँ कि मेरे जो भी अंग किसी काम आ सके उनका दान कर दिया जाय। शरीरदान करना भी मैं पसंद करता हूँ। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। जब शरीर ही नहीं है तो शव यात्रा किस बात की?
यदि शरीरदान संभव न हो सका तो मेरे मृत्यु की खबर कुछ करीबी रिश्तेदार और करीबी मित्रों को ही दी जाय और शवयात्रा में कम से कम लोग आयें ऐसा कुछ इंतजाम किया जाय। किसी भी हालत में 50 से ज्यादा लोग न आए।
मृत्यु के बाद के रविवार या छुट्टी के दिन श्रमदान का आयोजन किया जाय और अधिकतम लोगों को उसमें शामिल होने के लिए प्रेरित किया जाय। श्रमदान किस चीज के लिए हो यह कोई सामाजिक संस्था ने सरकारी संस्थानों के साथ मिलकर निश्चित करना चाहिए। श्रमदान के लिए कुछ मुद्दे यह हो सकते हैं:
बरसात के दिनों में वृक्षारोपण का कार्यक्रम हो।
बरसात के पहले तालाबों/ नदियों को को गहरा करने का काम हो।
बरसात के पहले शहर के नालों / नालियों और अन्य स्थानों की सफाई।
“गूंज” के लिए पुराने वस्त्रों/ गरम कपड़ों का संग्रह; इत्यादि इत्यादि।
हम लोग प्रायः कर यूरोप और अमेरिका का अनुकरण कर रहे हैं। उन देशों में श्रम को नीची दृष्टि से नहीं देखा जाता है। वहाँ पर “dignity of labour” में यकीन किया जाता है। कोई भी व्यक्ति काम से छोटा नहीं माना जाता है। जबकि हमारे यहाँ शारीरिक श्रम को हेय दृष्टि से देखा जाता है।
यहाँ तक कि हमारे देश के रईसों के बच्चे भी जब विदेशों में पढ़ने जाते हैं तो वहाँ अपना खर्च निकालने के लिएwaiter या अन्य काम करते देखे जाते हैं। मेरे एक वर्ष के कनाडा प्रवास के दौरान मैंने देखा था कि यहाँ से बड़े उद्योगपति भी जब प्रदर्शनियों में शामिल होने आते हैं तो अपना सामान ट्रकों से खुद ही उतारते और चढ़ाते हैं। भले ही वह अपने घर में पानी भी खुद लेकर पीने के आदि न हो।
मृत्यु के तीसरे दिन प्रायः उठावना का कार्यक्रम होता है जिसमें शवयात्रा में आए हुये लोग और अन्य लोग शामिल होते हैं। यह कार्यक्रम आधे घंटे से लेकर दो घंटे तक चलता है। कहीं कहीं भजन का कार्यक्रम होता है तो कहीं भजन की केसेट लगा दी जाती है। आए हुये लोग बैठ कर आपस में बातें करते हैं और कुछ समय बाद दिवंगत कि फोटो पर पुष्प चढ़ा नमन कर निकाल जाते हैं।
मैं चाहूँगा कि मेरे मृत्यु उपरांत हुये उठवना में में पेंसिल थेरेपी का कार्यक्रम किया जाय ताकि आने वालों को यदि कोई दर्द हो तो वह दर्द दूर किए जा सकें। और जो स्वस्थ हो उन्हें पेंसिल थेरेपी सीखाई जाय ताकि उनके संपर्क में जो दर्दी हों उनका वह दर्द निवारण कर सके। मेरे लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
आप लोगों से निवेदन है कि मेरे इस निर्णय पर अपनी राय प्रकट करें और मेरी कोई त्रुटि हो उसे ठीक करें। मेरे मन में यह बात कई दिनों से चल रही थी सो मैंने यह आपके सामने पेश कर दी।
With warm regards and best wishes.
CS Ramanuj AsawaCompany Secretary by profession, Acupressure therapist by hobby, Human by
nature, trying to alleviate the pains of suffering humanity.
President
Pain Relief Foundation
#205, Himalaya Enclave, 1, Shivajinagar,
Gandhinagar (LAD College) Square
NAGPUR 440010
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Visit for pain relief/ training with prior Appointment
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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद दुखभाग भवेत्.
*
प्यारेप्रभु ! सबका कल्याण हो ! सबको शांति प्राप्त हो ! सबमें पूर्णता आये !
सब सौभाग्यशाली हों !!
मेरे नाथ !
सब सुखी हो !सब योग्य हों ! सब परस्पर एक दूसरे का भला चाहें ! कोई भी दुःख से
पीड़ित न हो !!)
*
May all be happy. May all enjoy health and freedom from disease.
May all have prosperity and good luck. May none suffer or fall on evil days.
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सब सौभाग्यशाली हों !!
मेरे नाथ !
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