Friday, December 13, 2013

ओशो के जन्मदिन पर उनके 11 स्वर्णिम सूत्र

ओशो के जन्मदिन पर उनके 11 स्वर्णिम सूत्र

ओशो की वाणी में से कुछ बहुमूल्य चुनना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल भी। उनकी वाणी के अथाह सागर में से कुछ भी कहीं से भी ले लें, हर वाक्य ग्रंथ की तरह है।शशिकांत 'सदैव' बता रहे हैं, उनके 11 स्वर्णिम सूत्र, जिनको अपनाकर आप भी अपने व्यावहारिक जीवन को सफल बना सकते हैं:

अभी और यहीं
मनुष्य या तो अपने बीते हुए पलों में खोया रहता है या फिर अपने भविष्य की चिंताओं में डूबा रहता है। दोनों सूरतों में वह दुखी रहता है। ओशो कहते हैं कि वास्तविक जीवन वर्तमान में है। उसका संबंध किसी बीते हुए या आने वाले कल से नहीं है। जो वर्तमान में जीता है वही हमेशा खुश रहता है।

भागो नहीं, जागो
हम हमेशा अपने दुखों और जिम्मेदारियों से भागते रहते हैं, उनसे बचने के बहाने खोजते रहते हैं। अपनी गलतियों और कमियों के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराते रहते हैं, लेकिन ऐसा करके भी हम खुश नहीं रह पाते। ओशो कहते हैं कि परिस्थितियों से भागना नहीं चाहिए।

मैं नहीं, साक्षी भाव
मनुष्य के दुख का एक कारण यह भी है कि वह किसी भी चीज को, फिर वह इंसान हो या परिस्थिति, ज्यों का त्यों नहीं स्वीकारता। वह उसमें अपनी सोच अवश्य जोड़ देता है, जिसके कारण वह उसका हिस्सा बनने से चूक जाता है और दुखी हो जाता है। ओशो कहते हैं कि जो हो रहा है, उसे होने देना चाहिए, कोई अवरोध नहीं बनना चाहिए।

दमन, नहीं सृजन
मनुष्य सदा तनाव में रहता है। कभी ईर्ष्या से तो कभी क्रोध से भरा ही रहता है। उसमें भटकने और आक्रामक होने की संभावना हमेशा छुपी रहती है। वह चाहकर भी आनंदित और सुखी नहीं रह पाता। ओशो कहते हैं कि मनुष्य एक ऊर्जा है। हम यदि उस ऊर्जा को दबाएंगे तो वह कहीं न कहीं किसी और विराट रूप में प्रकट होगी ही।

शिकायत नहीं, धन्यवाद
ऐसा कौन है, जिसका मन शिकायतों से नहीं भरा! घर हो या दफ्तर, भगवान हो या संबंध, हम हमेशा सबसे शिकायत ही करते हैं। हमारी नजर हमेशा इस बात पर होती है कि हमें हमारे अनुसार क्या नहीं मिला। ओशो कहते हैं कि हमारी नजर सदा उस पर होनी चाहिए जो हमको मिला है।

ध्यान एकमात्र समाधान
अपनी इच्छाओं के पूरा होने के लिए लोग हमेशा से प्रार्थना, पूजा व कर्मकांड आदि को प्राथमिकता देते रहे हैं। ध्यान तो लोगों के लिए एक नीरस या उदास कर देने वाला काम है, तभी तो लोग पूछते हैं कि ध्यान करने से होगा क्या? ओशो ने ध्यान को जीवन में सबसे जरूरी बताया,यहां तक कि ध्यान को जीवन का आधार भी माना।

दूसरे को नहीं, खुद को बदलें
देखा जाए तो परोक्ष रूप से मनुष्य के तमाम दुखों और तकलीफों का आधार यह सोच रही है कि मेरे दुख का कारण सामने वाला है। हम परिस्थितियों या किस्मत के साथ भी यही रवैया रखते हैं कि वह बदलें हम नहीं।

अतिक्रमण नहीं, संतुलन
अति हर चीज की बुरी होती है। यह बात जानते हुए भी मनुष्य हर चीज की अति सुख को पाने या बनाए रखने के लिए करता है। ओशो कहते हैं सुख की चाह ही दुख की जड़ है। सुख अपने साथ दुख भी लाता है। ओशो कहते हैं न पाने का सुख हो, न खोने का दुख, यही अवस्था संन्यास की अवस्था है।

धर्म नहीं, धार्मिकता
मनुष्य ने अपनी पहचान को धर्म की पहचान से व्यक्त कर रखा है। कोई हिंदू है, कोई मुसलमान, कोई सिख तो कोई ईसाई। धर्म के नाम पर आपसी भेदभाव ही बढ़े हैं। नतीजा यह है कि आज धर्म पहले है मनुष्य और उसकी मनुष्यता बाद में। वह कहते हैं, आनंद मनुष्य का स्वभाव है और आनंद की कोई जाति नहीं उसका कोई धर्म नहीं।

सहें नहीं, स्वीकारें
बचपन से ही हमें सहना सिखाया जाता है। सहने को एक अच्छा गुण कहा जाता है। बरसों से यही दोहराया जाता रहा है कि यदि हर कोई सहनशील हो जाए तो न केवल व्यक्तिगत तौर पर बल्कि वैश्विक तौर पर धरती पर शांति हो सकती है, लेकिन आज परिणाम सामने है। ओशो बोध के पक्ष में हैं।

जीवन ही है प्रभु
ओशो कहते हैं कि आदमी बहुत अजीब है, वह इंसान की बनाई चीजों को तो मानता व पूजता है लेकिन स्वयं को, ईश्वर की बनाई सृष्टि और उसमें मौजूद प्रकृति की तरफ कभी भी आंख उठाकर नहीं देखता। सच यह है कि परमात्मा को मानने का मतलब ही हर चीज के लिए 'हां', पूर्ण स्वीकार भाव और यह जन्म जीवन उसका जीता-जागता सबूत है।

Wednesday, December 11, 2013

Flourishing kitchen Garden business.....try it

शहरों में जड़ें जमा रहा है किचन गार्डन का बिजनेस


जयश्री भोसले, पुणे
एक फार्मा कंपनी के सेल्स डायरेक्टर अमोल वाघ (45) एक ऑफिशियल विजिट पर विदेश में हैं। उन्होंने तय किया है कि अगले महीने लौटने पर वह घर में सब्जियों की खेती करेंगे। इथियोपिया की राजधानी अदीस अबाबा रवाना होने से पहले उन्होंने टेरेस पर 60 पॉट्स में सब्जियों की बुआई की थी। इसके अलावा उन्होंने अपने बंगले के सामने गार्डन की कुछ क्यारियों में भी बीज बोए थे।
वाघ जैसे शहरी लोगों की संख्या बढ़ रही है, जो बिजी लाइफ के बावजूद सब्जियों की खेती में दिलचस्पी ले रहे हैं। एक महीना पुणे और एक महीना अदीस अबाबा में बिताने के बावजूद वाघ ने तय किया है कि वे अब घर में उगाई गई सब्जियां ही खाया करेंगे। उन्होंने कहा कि बतौर एक फार्मासिस्ट मुझे पता है कि सब्जियों पर कीटनाशकों का कितना खराब असर पड़ता है।
इस काम में हालांकि पॉट्स, मिट्टी, बीज आदि जुटाने में दिक्कत हो सकती है, लेकिन अगर यह काम आउटसोर्स कर दें तो आसानी हो जाती है। ऑर्गेनिक तरीके से सब्जियों की खेती करने वालों के संगठन अभिनव फार्मर्स क्लब ने दो दिन पहले ही वाघ के घर में किचेन गार्डन लगाया है। वाघ या उनके किसी फैमिली मेंबर को सब्जियों की देखभाल में रोज बमुश्किल आधा घंटा देना होगा। ड्रिप इरिगेशन सिस्टम और वर्मी कंपोस्ट यूनिट लगाने के बाद ज्यादा काम नहीं बचता। वर्मी कंपोस्ट यूनिट में न केवल किचेन और गार्डन के वेस्ट मटीरियल का इस्तेमाल हो जाएगा, इससे सब्जियों के लिए अच्छी खाद भी मिलेगी।
शहरों में रहने वाले काफी लोग किचन गार्डन में दिलचस्पी ले रहे हैं क्योंकि कम से कम कीटनाशकों के उपयोग से उगाई गई सब्जियों का मजा लेने का यही भरोसेमंद तरीका शहरों में रह गया है। पुणे के हिंजेवाड़ी आईटी पार्क में अभिनव फार्मर्स क्लब की ओर से हर रविवार होने वाले ट्रेनिंग सेशन में करीब 20 लोग आते हैं और सीखते हैं कि गमलों में सब्जियों की खेती कैसे की जा सकती है। इस एनजीओ ने हाल में एक प्रॉड्यूसर कंपनी की स्थापना की है और इसका एन्युअल टर्नओवर 24 करोड़ रुपये से ज्यादा है। यह ग्रुप एक किचन गार्डन लगाने के बदले 5 हजार से 10 हजार रुपये लेता है। यह एनजीओ जल्द मुंबई में भी किचन गार्डन बनाने में लोगों की मदद करना शुरू करेगा। बोडके ने कहा कि ठाणे से हमें पहले ही 56 ऑर्डर मिल चुके हैं।
ऑर्गेनिक वेजिटेबल्स सप्लाई करने के लिए इस क्लब की स्थापना करने वाले डी बोडके से लोगों ने अनुरोध किया था कि वे उन्हें किचन गार्डन बनाने में मदद करें। बोडके ने कहा कि इतने ज्यादा लोग गुजारिश करते हैं कि हम हर जगह अपने लोगों को किचन गार्डन के मेंटिनेंस के लिए नहीं भेज पाते हैं। इसे देखते हुए हमने ट्रेनिंग सेशन शुरू किए। खुद सब्जियां उगाने में जब वाघ को ठीकठाक सफलता नहीं मिली तो उन्होंने भी अभिनव फार्मर्स क्लब के ट्रेनिंग सेशन में हिस्सा लिया। 

Sunday, December 8, 2013

Practicing Patience

“Nature does not hurry, yet everything is accomplished.”~ Lao Tzu

Is it possible to never hurry, but to get everything done?

It seems contradictory to our modern world, where everything is a rush, where we try to cram as much into every minute of the day as possible, where if we are not busy, we feel unproductive and lazy.
In fact, often we compete by trying to show how busy we are. I have a thousand projects to do! Oh yeah? I have 10,000! The winner is the person who has the most insane schedule, who rushes from one thing to the next with the energy of a hummingbird, because obviously that means he’s the most successful and important.

Right?

Maybe not. Maybe we’re playing the wrong game — we’ve been conditioned to believe that busier is better, but actually the speed of doing is not as important as what we focus on doing.

Maybe we’re going at the wrong speed. Maybe if we are constantly rushing, we will miss out on life itself. Let’s let go of the obsession with speed, and instead slow down, stop rushing, and enjoy life.

And still get everything done. How?

This requires A Change of Mindset.
The most important step is a realization that life is better when you move at a calm, more relaxed pace, instead of hurrying and rushing and trying to cram too much into every day. Instead, get the most out of every moment.

 A Short Story: Practicing Patience

A man observed a woman in the grocery store with a three year old girl in her basket.

As they passed the cookie section, the little girl asked for cookies and her mother told her no. The little girl immediately began to whine and fuss.
The mother said quietly, “Now Monica, we just have half of the aisles left to go through; don’t be upset. It won’t be long.”

Soon they came to the candy aisle, and the little girl began to shout for candy. And when told she couldn't have any, began to cry. The mother said, "There, there, Monica, only two more aisles to go, and then we’ll be checking out.”

When they got to the check-out stand, the little girls immediately began to clamor for gum and burst into terrible tantrum.The mother patiently said, “Monica, we’ll be through this check out stand in 5 minutes and then you can go home and have a nice nap.”

The man followed them out to the parking lot and stopped the woman to compliment her.

“I couldn't help noticing how patient you were with little Monica,” he said.
Whereupon the mother said,
“I’m Monica . . . my little girl’s name is Tammy.”
Discussion:
Whatever is happening, we still have to keep our balance and composure in that situation.
This HUSH - HUSH is damaging our sensitivity to judge others, its spoiling our quality of life.

Jain Moral:
Our Guru jis and Muni Maharaj are a symbol of maintaining the utmost calmness and never be in a hurry. It’s a human nature TO OBSERVE AND LEARN. Then why are we ‘Jains’ not learning from our Munis, 'the relaxed pace of life and not to react too much to any situation, just flow with the life intelligently'.

Hope it works for all of you…
Regards.
A Young Jaina